वर्ष 1912 ,
#ओकलाहामा #अमेरिका
एक #कोयला_खदान में एक बड़ा सा "कोयले का टुकड़ा मिला"
उस कोयले के टुकड़े को तोड़ने पर उसमें से लोहे का बना #दो_मुखी_दीपक निकला,
जिसे देख कर अभी तक पुरातत्व वैज्ञानिक आश्चर्य में हैं कि यह कैसे संभव है।
कोयला बनने की प्रक्रिया में लाखों, करोड़ों वर्ष लगते हैं जबकि पाश्चात्य वैज्ञानिकों का मानना है कि मानव सभ्यताओं का उदय लगभग पाँच से छह हजार वर्ष पहले ही हुआ था। फिर इतने समय पहले ऐसा लोहे का दीपक किसने बनाया जो कोयले के भीतर से निकला।
"भारतीय संस्कृति के चतुर्युगी सिद्धांत को स्वीकार करने पर ही यह गुत्थी सुलझ सकती है"
अब समझते हैं सनातन दर्शन के अनुसार सृष्टि की काल गणना 👇
सृष्टि की वर्तमान आयु पर विचार करते हैं।
वर्तमान में सृष्टि का वर्णन #Friedmann_Model के अनुसार किया जाता है।
इसमें " बिग बैंग #big_bang " के साथ ही आकाश-समय निरन्तरता का जन्म हो जाता है,
अर्थात् समय की गणना बिग बैंग के प्रारंभ होने के साथ ही शुरू हो जाती है।
एक अमेरिकन वैज्ञानिक #Edwin_Hubble ने 9 विभिन्न आकाश गंगाओं (#Galaxies) की दूरी जानने का प्रयत्न किया। उसने बताया कि हमारी आकाश गंगा तो अत्यन्त छोटी है, ऐसी तो करोड़ों आकाश गंगाएँ हैं।
साथ ही उसने यह भी बताया कि जो आकाश गंगा (Galaxy) हमसे जितनी अधिक दूर है, उतनी ही अधिक तेजी से वह हम से दूर भागती जा रही है।
उसने उनकी हमसे दूर होने की चाल की गति भी ज्ञात कर ली। फिर इस सिद्धान्त पर भी आकाश गंगाओं के समय तो सब एक ही स्थान पर थे।
उन्हें इतना दूर जाने में कितना समय लगा,
उसका एक नियम भी खोज लिया।
नियम है -" V=HR"
यहाँ V आकाश गंगा की हमसे दूर भागने की गति है,
R आकाश गंगा की हमसे दूरी है और H Constant है।
Edwin Hubble ने यह भी ज्ञात किया कि कोई भी आकाश गंगा जो हमसे d दस लाख प्रकाश वर्ष की दूरी पर है,
उसकी दूर हटने की गति 19d मील प्रति सैकण्ड है।
अतः अब समय R=106 d प्रकाश वर्ष, T =106×365×24×3600×186000d वर्ष
19d×3600×24×365
=186×109=9.7×109वर्ष
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Saint Augustine ने अपनी पुस्तक The City of God में बताया कि उत्पत्ति की पुस्तक के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति ईसा से 500 वर्ष पूर्व हुई है।
बिशप उशर का मानना है कि सृष्टि की उत्पत्ति ईसा से 4004 वर्ष पूर्व हुई है
और केब्रीज विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. लाइटफुट ने सृष्टि उत्पत्ति का समय 23 अक्टूबर 4004 ईसा पूर्व प्रातः 9 बजे बताया है जो हास्यास्पद है।
अब हम वैदिक वाङ्मय के आधार पर सृष्टि की आयु पर विचार करते हैं...
स्वामी #दयानन्द_सरस्वती ने #ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के दूसरे अध्याय अथ वेदोत्पत्ति विषय में इस पर विचार किया है
कि वेद की उत्पत्ति कब हुई?
इससे यह मानना चाहिए कि सृष्टि में मानव की उत्पत्ति कब हुई, क्योंकि मानव के उत्पन्न होने पर ही तो वेद का ज्ञान उसे प्राप्त हुआ है।
इससे पूर्व की स्थिति अर्थात् सृष्टि उत्पन्न होने के प्रारम्भ से मानव के उत्पन्न होने के समय पर उन्होंने अपने विचार देना उचित नहीं समझा।
वास्तव में मनुष्य ने तो अपने उत्पन्न होने के बाद ही समय की गणना प्रारमभ की है।
सृष्टि के उस समय की गणना वह कैसे करता, जब बन ही रही थी?
वह कैसे जानता
कि सृष्टि उत्पन्न होने की क्रिया के प्रारम्भ होने से उसके पूर्ण होने तक सृष्टि निर्माण में कितना समय व्यतीत हुआ है?
इस में #मनुस्मृति के श्लोकों को ही मुख्य रूप से काम में लिया है👇
अत्वार्याहुः सहस्त्राणि वर्षाणां तत्कृतं युगम्।
तस्य यावच्छतो सन्ध्या सन्ध्यांशश्च तथा विधः।।
(मनु. 1.69)
उन दैवीयुग में (जिनमें दिन-रात का वर्णन है)
चार हजार दिव्य वर्ष का एक सतयुग कहा है।
इस सतयुग की जितने दिव्य वर्ष की अर्थात् 400 वर्ष की सन्ध्या होती है
और उतने ही वर्षों की अर्थात् 400 वर्षों का सन्ध्यांश का समय होता है।
इतंरेषु ससन्ध्येषु ससध्यांशेषु च त्रिषु।
एकापायेन वर्त्तन्ते सहस्त्राणि शतानि च।।
(मनु. 1.70)
और अन्य तीन; त्रेता, द्वापर और कलियुग में सन्ध्या नामक कालों में तथा सन्ध्यांश नामक कालों में क्रमशः एक-एक हजार और एक-एक सौ कम कर ले तो उनका अपना-अपना काल परिणाम आ जाता है।
इस गणना के आधार पर सतयुग 4800 देव वर्ष, त्रेतायुग 3600 देव वर्ष, द्वापर 2400 वर्ष तथा कलियुग 1200 देव वर्ष के होते हैं।
इस चारों का योग अर्थात् एक चतुर्युगी 12000 देव वर्ष का होता है।
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दैविकानाम युगानां तु सहस्त्रं परि संखयया।
ब्राह्ममेकमहर्ज्ञेयं तावतीं रात्रिमेव च।।(मनु. 1.72)
देव युगों को 1000 से गुण करने पर जो काल परिणाम निकलता है,
वह ब्रह्म का एक दिन और उतने ही वर्षों की एक रात समझना चाहिए।
यह ध्यान रहे कि एक देव वर्ष 360 मानव वर्षों के बराबर होता है।
तद्वै युग सहस्रान्तं ब्राह्मं पुण्यमहर्विदुः।
रात्रिं च तावतीमेव तेऽहोरात्रविदोजनाः।।
(मनु. 1.73)
जो लोग उस एक हजार दिव्य युगों के परमात्मा के पवित्र दिन को और उतने की युगों की परमात्मा की रात्रि समझते हैं,
वे ही वास्तव में दिन-रात = सृष्टि उत्पत्ति और प्रलय काल के विज्ञान के वेत्ता लोग हैं।
इस आधार की सृष्टि की आयु = 12000×1000 देव वर्ष = 12000000 देव वर्ष
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12000000×360 = 4320000000 देव वर्ष
12000000 देव वर्ष = 4320000000 मानव वर्ष
यह है #सृष्टि