आरंभ
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*राम से बड़ा राम का नाम क्यों..?*

*रामदरबार में हनुमानजी महाराज श्री रामजी की सेवा में इतने तन्मय हो गए कि गुरू वशिष्ठ के आने का उनको ध्यान ही नहीं रहा सबने उठ कर उनका अभिवादन किया लेकिन हनुमानजी नहीं कर पाए वशिष्ठ जी ने श्री रामजी से कहा कि राम गुरु का भरे दरबार में अभिवादन नहीं कर अपमान करने पर क्या सजा होनी चाहिए...?*

*श्री रामजी ने कहा गुरुवर आप ही बताएं....?*

*वशिष्ठ जी ने कहा:- "मृत्यु दण्ड"*

*श्रीराम जी ने कहा:- स्वीकार है*

*तब श्रीराम जी ने कहा:- गुरुदेव आप बताएं कि यह अपराध किसने किया है....?*

*बता दूंगा पर "राम" वो तुम्हारा इतना प्रिय है कि, तुम अपने आप को सजा दे दोगे पर उसको नहीं दे पाओगे*

*श्रीराम जी ने कहा:- गुरुदेव,राम के लिए सब समान हैं, मैंने सीता जैसी पत्नी का सहर्ष त्याग धर्म के लिए कर दिया....फिर भी आप संशय कर रहे हैं....?*

*नहीं, "राम"! मुझे तुम्हारे उपर पर संशय नहीं है पर, मुझे दण्ड के परिपूर्ण होने पर संशय है.... अत:यदि तुम यह विश्वास दिलाते हो कि,तुम स्वयं उसे मृत्यु दण्ड अपने अमोघ बाण से दोगे तो ही मैं अपराधी का नाम और अपराध बताऊंगा श्रीराम जी ने पुन: अपना संकल्प व्यक्त कर दिया।*

*तब वशिष्ठ जी ने बताया कि यह अपराध हनुमान जी ने किया है हनुमानजी ने भी स्वीकार कर लिया।*
*तब दरबार में रामजी ने घोषणा की कि कल सांयकाल सरयु के तट पर,हनुमानजी को में स्वयं अपने अमोघ बाण से मृत्यु दण्ड दूंगा*

*हनुमानजी के घर जाने पर उदासी की अवस्था में माता अंजनी ने देखा तो चकित रह गई कि मेरा लाल महावीर, अतुलित बल का स्वामी, ज्ञान का भण्डार, आज इस अवस्था में...?*

*माता ने बार बार पुछा, पर जब हनुमान चुप रहें तो माता ने अपने दूध का वास्ता देकर पूछा।*

*तब हनुमानजी ने बताया कि, यह प्रकरण हुआ है अनजाने में...माता! आप जानती हैं कि हनुमान को संपूर्ण ब्रह्माण्ड में कोई नहीं मार सकता, पर भगवान श्रीराम के अमोघ बाण से भी कोई बच भी नहीं सकता l तब "माता" ने कहा:-हनुमान,मैंने भगवान शंकर से, "राम" मंत्र (नाम) प्राप्त किया था ,और तुम्हें भी जन्म के साथ ही यह नाम घुटी में पिलाया। जिसके प्रताप से तुमने बचपन में ही सूर्य को फल समझ मुख में ले लिया था,उस राम नाम के होते हुए हनुमान कोई भी तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकता, चाहे वो राम स्वयं ही क्यों ना हों।*

*राम नाम की शक्ति के सामने राम की शक्ति और राम के अमोघ शक्तिबाण की शक्तियां महत्वहीन हो जाएंगी।जाओ मेरे लाल,अभी से सरयु के तट पर जाकर राम नाम का उच्चारण करना आरंभ करदो।माता के चरण छूकर हनुमानजी,सरयु किनारे राम राम राम राम रटने लगे।*

*सांयकाल,राम अपने सम्पूर्ण दरबार सहित सरयु तट आए....... सबको कोतूहल था कि क्या राम हनुमान को सजा देंगे....?*

*लेकिन जब श्रीराम ने बार बार रामबाण, अपने महान शक्तिधारी, अमोघशक्ति बाण चलाए पर हनुमानजी के ऊपर उनका कोई असर नहीं हुआ तो गुरु वशिष्ठ जी ने शंका जताई:-राम क्या तुम अपनी पुर्ण निष्ठा से बाणों का प्रयोग कर रहे हो...?*

*तब श्रीराम ने कहा:- हां गुरूदेव, मैं गुरु के प्रति अपराध की सजा देने को अपने बाण चला रहा हूं,उसमें किसी भी प्रकार की चतुराई करके मैं कैसे वही अपराध कर सकता हूं..? तो तुम्हारे बाण अपना कार्य क्यों नहीं कर रहे हॆ ?*

*तब श्रीराम ने कहा:- गुरुदेव हनुमान राम राम राम की अंखण्ड रट लगाये हुए है,मेरी शक्तिंयों का अस्तित्व राम नाम के प्रताप के समक्ष महत्वहीन हो रहा है। इससे मेरा कोई भी प्रयास सफल नहीं हो रहा है,आप ही बताएं गुरु देव ! मैँ क्या करुं..?*

*गुरु देव ने कहा:- हे राम! आज से मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे दरबार को त्याग कर,अपने आश्रम जा रहा हूं जहां राम नाम का निरंतर जप करुंगा जाते -जाते, गुरुदेव वशिष्ठ जी ने घोषणा की....हे राम ! मैं जानकर, मानकर,यह घोषणा कर रहा हूं कि स्वयं राम से राम का नाम बडा़ है,राम नाम महा अमोघशक्ति का सागर है। जो कोई जपेगा, लिखेगा,मनन करेगा, उसकी लोक कामनापूर्ति होते हुए भी,वो मोक्ष का भागी होगा।मैंने सारे मंत्रों की शक्तियों को राम नाम के समक्ष न्युनतर माना है। तभी से राम से बडा राम का नाम माना जाता है, वो पत्थर भी तैर जातें है जिन पर श्रीराम का नाम लिखा रहता है।*

🙏🌹

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