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यथा सुराणाममृतं सुखाय तथा नराणां भुवि तक्रमाहु: |

‘जिस प्रकार स्वर्ग में देवों को सुख देनेवाला अमृत है, उसी प्रकार पृथ्वी पर मनुष्यों को सुख देनेवाला तक्र हैं |’ ( भावप्रकाश )

दही में चौथाई भाग पानी मिलाकर मथने से तक्र तैयार होता है | इसे मट्ठा भी कहते हैं | ताजा मट्ठा सात्त्विक आहार की दृष्टि से श्रेष्ठ द्रव्य है | यह जठराग्नि प्रदीप्त कर पाचन – तंत्र कार्यक्षम बनाता है | अत: भोजन के साथ तथा पश्चात मट्ठा पीने से आहार का ठीक से पाचन हो जाता है | जिन्हें भूख न लगती हो, ठीक से पाचन न होता हो, खट्टी डकारें आती हों और पेट फूलते – अफरा चढने से छाती में घबराहट होती हो, उनके लिए मट्ठा अमृत के समान है |

मट्ठे के सेवन से ह्रदय को बल मिलता है, रक्त शुद्ध होता है और विशेषत: ग्रहणी की क्रिया अधिक व्यवस्थित होती है | कई लोगों को दूध रुचता या पचता नहीं है | उनके लिए मट्ठा अत्यंत गुणकारी है |

मक्खन निकाला हुआ तक्र पथ्य अर्थात रोगियों के लिए हितकर तथा पचने में हलका होता है | मक्खन नहीं निकला हुआ तक्र भारी, पुष्टिकारक एवं कफजनक होता है |

वातदोष की अधिकता में सोंठ व सेंधा नमक मिला के, कफ की अधिकता में सोंठ, काली मिर्च व पीपर मिलाकर तथा पित्तजन्य विकारों में मिश्री मिला के तक्र का सेवन करना लाभदायी है |

शीतकाल में तथा भूख की कमी, वातरोग, अरुचि एवं नाड़ियों के अवरोध में तक्र अमृत के समान गुणकारी होता है | यह संग्रहणी, बवासीर, चिकने दस्त, अतिसार (दस्त), उलटी, रक्ताल्पता, मोटापा, मूत्र का अवरोध, भगंदर, प्रमेह, प्लीहावृद्धि, कृमिरोग तथा प्यास को नष्ट करनेवाला होता है |

दही को मथकर मक्खन निकाल लिया जाय और अधिक मात्रा में पानी मिला के उसे पुन: मथा जाय तो छाछ बनती है | यह शीतल , हलकी, पित्तनाशक, प्यास, वात को नष्ट करनेवाली और कफ बढ़ानेवाली होती है |

मट्ठे के औषधीय प्रयोग
१] मट्ठे में जीरा, सौंफ का चुनर व सेंधा नमक मिलाकर पीने से खट्टी डकारें बंद होती हैं |

२] गाय का ताजा, फीका मट्ठा पीने से रक्त शुद्ध होता है और रस, बल तथा पुष्टि बढ़ती है | शरीर – वर्ण निखरता है, चित्त प्रसन्न होता है, वात-संबंधी अनेक रोगों का नाश होता है |

३] ताजे मट्ठे में चुटकीभर सोंठ, सेंधा नमक व काली मिर्च मिलाकर पीने से आँव, मरोड़ तथा दस्त दूर हो के भोजन में रूचि बढ़ती है |

४] मट्ठे में अजवायन और काला नमक मिलाकर पीने से कब्ज मिटता है |
उपरोक्त सभी गुण गाय के ताजे व मधुर मट्ठे में ही होते हैं | ताजे दही को मथकर उसी समय मट्ठे का सेवन करें | ऐसा मट्ठा दही से कई गुना अधिक गुणकारी होता है | देर तक रखा हुआ खट्टा व बासी मट्ठा हितकर नही है |

५] केवल ताजे दही को मथकर हींग, जीरा तथा सेंधा नमक डाल के पीने से अतिसार, बवासीर और पेडू का शूल मिटता है |

ताजे दही का अर्थ है, रात को जमाया हुआ दही जिसका उपयोग सुबह किया जाय एवं सुबह जमाया हुआ दही जिसका सेवन मध्यान्हकाल में अथवा सूर्यास्त के पहले किया जाय | सायंकाल के बाद दही अथवा छाछ का सेवन नहीं करना चाहिए |

सावधानी – १] दही एंव मट्ठा ताँबे, काँसे, पीतल एवं एल्युमिनियम के बर्तन में न रखें | दही बनाने के लिए मिट्टी अथवा चाँदी के बर्तन विशेष उपयुक्त हैं, स्टील के बर्तन भी चल सकते हैं |
२] अति दुर्बल व्यक्तियों को तथा क्षयरोग, मूर्च्छा, भ्रम, दाह व रक्तपित्त में तक्र का उपयोग नहीं करना चाहिए | उष्णकाल अर्थात शरद और ग्रीष्म ऋतुओं में तक्र का सेवन निषिद्ध है | इन दिनों यदि तक्र पीना ही हो तो जीरा व मिश्री मिला के ताजा व कम मात्रा में लें |

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