"#जेहाद केवल #दलित #मुसलमान करते हैं!"
"मुसलमानों में उच्च-वर्गीय #शेख #सैयद #पठान और इनके बच्चे न #ज़िहादी बनते हैं, न कभी #दीन के लिये होते कुर्वान!
- डा. अशोक शुक्ल"
अरब के मुसलमानों में सबसे उच्च माने जाते हैं जिन्हें #शैख कहा जाता है.
शेखों की उच्चता का अंदाजा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे लोग जो अपने सर के ऊपर "कुकर के रबर की तरह क्राउन" लगाते हैं उसे कोई और नहीं लगा सकता है।
अगर लगा लिया तो, समझो कि फिर उनकी मुंडी ही नहीं रहेगी...!
खैर...
दुनिया भर में 'जेहाद' के नाम पर 'आतंकवाद' है लेकिन आपने कभी सुना है कि अरब में भी 'आतंकवाद' है..?
या, अरब में कोई 'आतंक वादी' हमला हुआ हो..?
या फिर...
कोई अरबी जेहादी अथवा 'आतंकवादी' संगठन हो..?
या फिर, कोई अरबी ही 'जेहादी' अथवा 'आतंकवादी' हो?
आपने ऐसा इसीलिए नहीं सुना है...
क्योंकि, वे नहीं होते हैं...
वे ऐसा खुद करते नहीं हैं बल्कि दूसरों से करवाते हैं.
इनके बाद आते हैं ख़ुद को भारत के बाहर की नस्लों जैसे अफगान, अरब, पर्शियन या तुर्क बताने वाले...
जैसे कि ... मुग़ल, पठान, सैयद, शेख आदि.
ये सब मुस्लिमों के अपर कास्ट में आते हैं.
इन सबके बाद आते हैं... अफगानी पश्तो (तालिबान वाले) {ओबीसी टाइप}.
और, अंत में आते हैं दलित मुसलमान जैसे कि......
दर्जी, धोबी, धुनिया, गद्दी, फाकिर, हज्जाम (नाई), जुलाहा, कबाड़िया, कुम्हार, कंजरा, मिरासी, मनिहार, तेली, हलालखोर, भंगी, हसनती, लाल बेगी, मेहतर, नट, गधेरी, कसाई आदि.
इसमें सबसे मजेदार बात क्या है... मालूम है...?
खान, पठान, सैय्यद आदि कभी 'जेहाद' नहीं करते हैं...
बल्कि, वे दूसरों को बताते हैं कि 'जेहाद' करने से जन्नत मिलेगा, हूर मिलेगी, प्याज मिलेगा, लहसुन मिलेगा...
लेकिन, वे कभी भी हथियार उठा कर जन्नत पाने नहीं निकलते हैं.
और, ऐसे मुस्लिम अपर कास्ट के लोगों के बच्चे अक्सर विदेशों में अथवा अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ते हैं.
इसीलिए, वे मुसलमानों के दलित समुदाय के बच्चों को जन्नत भेजने और हूर दिलवाने पर ज्यादा भरोसा करते हैं.
और, दलित मुस्लिम समुदाय के बच्चों को
'हथियार' पकड़ा कर हूर पाने के लिए भेज देते हैं.
अब इसी बात पर मेरा बहुत छोटा सा सवाल है कि...
जब जन्नत जाने का एकमात्र रास्ता 'जेहाद' ही है तो...
क्या शेखों, पठानों और सैय्यदों को जन्नत नहीं जाना है...
और, हूर नहीं पानी है...?
आखिर, वे उन दलित मुस्लिम समुदाय के लोगों के जन्नत के मामले में इतने फिक्रमंद क्यों है जिनके यहाँ वे जीते जी पानी तक नहीं पीना चाहते...!
आपको यह जानकर बेहद हैरानी होगी कि...
26/11 को जो मुम्बई में हमला हुआ था... उसमें पकड़ा गया जेहादी अजमल कसाब दलित "कसाई समुदाय" का था.
उसके अलावा और बाकी के सभी 10 जेहादी भी दलित समुदाय के ही थे.
जबकि उसका हैंडलर... सलाउद्दीन का पूरा नाम "सैय्यद" सलाउद्दीन है.
शायद अब समझ आ गया होगा कि ये पूरा खेल क्या है..?
इसीलिए, मुसलमान दलित समुदाय के लोगों को अपने हैंडलर से ये जरूर पूछना चाहिए कि उन्हें सिर्फ 'जेहाद' के लिए ही क्यों भेजा जाता है?
इसकी जगह... उन्हें किसी मस्जिद में इमाम, मुफ़्ती या हाफिज आदि बनने के लिए क्यों नहीं बुलाया जाता है..?
मतलब कि... मरने के लिए "दलित मुसलमान" और उनके नाम की मलाई खाने के लिए सैय्यद, खान और पठान..?
जिस दिन दलित मुसलमानों को ये एहसास हो जाएगा कि उनके साथ क्या चालाकी की जा रही है...
तो, 'जेहाद' किसी दूसरे की तरफ नहीं... सैय्यद, हाफिज, खान, पठान, इमाम आदि के खिलाफ होगी..
क्योंकि, ये साफ साफ दलित मुसलमानों के साथ भेदभाव है...
और, उन बेचारों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है.
इसीलिए, मेरे ख्याल से हमारे भारतीय दलित मुसलमानों को भी प्रमुख मसजिदों में मौलवी और इमाम बना कर मजहब में उनकी भी हिस्सेदारी सुनिश्चित किया जाना चाहिए..!