हरामी भरे हैं हिन्दुओ में !!
-सभी #अपने लिये #समाधान चाहते हैं, #सबके लिये समाधान चाहने वाले कर्मठ मुझे अभी तक कोई दूसरा नहीं दिखा।
मोदीजी को कोसने वालों में हिंदू ही बहुतायत में हैं, क्योंकि इन सबकी दृष्टि तात्कालिक लाभ पर है। दूरगामी परिणामों की चिंता नहीं करने वाले हिंदू ही हिंदुत्व के शत्रु हैं।
संयुक्त पारिवारिक व्यवस्था को तिलांजलि हिंदुओं ने स्वयं ही दी है, इसके लिये किसी ने आक्रमण नहीं किया है।
रिश्ते शाश्वत होते हैं लेकिन रिश्तों को भी तिलांजलि देने में हिंदू ही स्वयं आगे रहते हैं। इसके लिये भी कोई बाहरी आक्रमण नहीं हुआ है।
हिंदुत्व में तलाक डिवोर्स की व्यवस्था ही नहीं है, लेकिन संसद में असंवैधानिक कानून बनाकर तलाक की कानूनी व्यवस्था हिंदुओं ने स्वयं की है, कोई बाहरी विदेशी ताकत ने ऐसा नहीं किया है।
संयुक्त परिवार के विघटन के बाद बचे न्यूक्लियर फैमली को तोड़ने में हिंदू ही स्वयं अग्रणी हैं।
सरकार ने तो केवल कानूनी ढाँचा दिया है कि इसके तहत यह पुनीत कार्य करो, बाकी की बुद्धिमत्ता तो हिंदू स्वयं ही दिखा रहे हैं।
बेबुनियाद आरोप लगाकर केस करने वाले हिंदू, वकील हिंदू, पुलिस हिंदू, जज हिंदू, तलाक लेने की सलाह देने वाले हिंदू, चुपके से दूसरी शादी करने वाले हिंदू, कुल की मर्यादा क्या होती है इसकी समझ नहीं रखने वाले हिंदू, विवाहेत्तर सम्बंधों को बनाने वाले हिंदू, उसके बाद जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, संस्कृतिवाद, आदि वादियों में भटकते हिंदू कलियुग को दोषी बताते मिलेंगे और प्रार्थना भी करते मिलेंगे कि भगवान अब तो अवतार ले लो और धर्म स्थापना कर दो, तुम तो कहे थे कि :-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥
यानी स्वयं का मालिक कोई और है, हम तो गुलाम हैं, आदेश दोगे तो कुछ करूँगा नहीं तो जो मर्ज़ी वही करूँगा, भले गड्ढे में ही गिरता चला जाऊँ, लेकिन स्वयं कुछ नहीं करूँगा।
क्यों?
क्योंकि, अगर इन सब पर ध्यान दूँगा तो मजे कब करूँगा?
क्या पारिवारिकता का त्याग करने और कबिलाइपन को आत्मसात करते हिंदुओं के हित में कुछ करना चाहिये?
आप ही कहोगे :- #नहीं करना चाहिये।
यही किया है काँग्रेस ने। तो गलत क्या किया है काँग्रेस ने?
आखिर, अनपढ़, पढ़ालिखा, गंवार, शहरी, निर्धन, धनाढ्य, उच्च वर्णीय, निम्न वर्णीय, उच्च जाति के, निम्न जाति के, सभी की एक ही आकांक्षा है न कि #मज़ा लिया जाय। #मौज की जाये, चोरी छुपे, बिना किसी की नज़रों में आये, सम्भव हो तो ततकथित ऊपरवाले की नज़रों से भी बचकर, बस मज़ा लिया जाये?
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