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*ये है चरखे से आई आजादी*👇

*विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस* मनाना क्यों जरूरी है ?

*बंटवारा...*
हिंदुओं और मुसलमानों
की एक जंग थी *जिसमें बर्बर मुसलमानों का नेतृत्व जिन्ना कर रहा था* और *हिंदुओं का नेतृत्व कायर मोहनदास कर रहा था..*

मुसलमानों ने 1947 में हिंदुस्तान की बोटी-बोटी कर डाली और कायर मोहनदास बकरी का दूध पीकर उपवास करता रहा... विभीजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाना इसलिए जरूरी है ताकि आने वाली पीढ़ियों को ये पता रहे कि जिस देश में रहने वाली कौम एक थप्पड़ खाकर दूसरा गाल आगे कर देती है उस देश का एक चौथाई हिस्सा सीधे देश के दुश्मनों के हाथ में चला जाता है ।

*-जिन्ना ना तो बाबर के समान योग्य सेनापति था...* ना तैमूर लंग के जैसा क्रूर था... ना अलाउद्दीन खिलजी के जैसा साम्राज्यवादी था... ना सिकंदर लोदी के जैसा धर्मांध था... ना औरंगजेब के समान अपने मजहब को लेकर एक निष्ठ था और ना ही अकबर के जितना महात्वाकांक्षी था *लेकिन इसके बाद भी जिन्ना बाबर, तैमूर, खिलजी, लोदी, औरंगजेब और अकबर से ज्यादा कामयाब साबित हुआ ?* उसने वो कर दिखाया जो कोई नहीं कर सका *आखिर क्यों ?* क्योंकि मूर्ख हिंदुओं ने अपना नेता एक ऐसे इंसान को मान लिया था *जो हिंदुओं को अहिंसा सिखाता था और मुसलमानों की चापलूसी करता था!*
*मोहनदास अंग्रेजों का एक एजेंट था जिसका मुख्य काम अंग्रेजों को 1857 जैसी किसी संभावित खूनी क्रांति से बचाना था...* दरअसल अंग्रेजों की 1857 में बहुत जबरदस्त कटाई हुई थी इसीलिए अंग्रेजों ने दिमाग लगाया और सोचा कि *कोई ऐसा सेफ्टी वॉल्व भारत में बनाया जाए जिससे अंग्रेजों के खिलाफ भारत के लोगों का गुस्सा धीरे धीरे बाहर निकलता रहा।*
गुस्सा एक साथ इतना इकट्ठा ना होने पाए कि फट जाए और अंग्रेजी हुकूमत दहल जाए ।
*इसीलिए अंग्रेजों ने कांग्रेस पार्टी का निर्माण किया ।* कांग्रेस पार्टी एक सेफ्टी वॉल्व थी जिसमें भारतवासियों के हितों की बात करने का ड्रामा किया जाता है..
*जो आज भी मूर्ख हिन्दू ओं के कारण बद् दुरस्त जारी है*
कांग्रेस के लिए काम करने वाले ज्यादातर लीडर्स अंग्रेजों के परमभक्त थे... *इन्हीं परमभक्तों की कतार में मोहनदास सबसे ज्यादा योग्य था।*
लेकिन आज भी हिंदू इस बात को समझ नहीं पा रहे हैं कि उनको किस तरह 1947 में ठग लिया गया था। *एक तरफ मोहनदास ने पाकिस्तान को मुस्लिम राष्ट्र बनवा दिया और दूसरी तरफ हिंदुस्तान रोहिंग्या और बांग्लादेशियो की सराय और मौलानाओं और पादरियों के धर्मांतरण वाले उत्पात की ऐशगाह बन गया।*

- अब ज़रा मुद्दे पर लौटते हैं... *विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाना इसलिए जरूरी है क्योंकि ये वो दिन है... जब देश को 3 टुकड़ों में बांट दिया गया।* प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बहुत बड़ा फैसला लिया है । इस फैसले का सबसे ज्यादा असर ये होगा कि वो हिंदू जिनकी अपने इतिहास को जानने में तनिक भी रूचि नहीं है
*वो 14 अगस्त को कम से कम ये तो जानेंगे कि कैसे उनके पूर्वजों का नरसंहार किया गया ?*
कैसे उनकी बहन बेटियों को जिहादियों ने भेड़ बकरियों की तरह यौनदास बना लिया ।

*- जब भी कोई हिंदू विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाएगा तो उसे ये भी याद आएगा कि वो मोहन दास कितना दोगला था जिसने ये कहा था कि अगर बंटवारा होगा तो मेरी लाश पर होगा!* और बाद में उसने ना सिर्फ बंटवारा स्वीकार किया *बल्कि पाकिस्तान में रह रहे क्षेत्रों में हिंदुओं को जिहाद की आग में जलने के लिए छोड़ दिया।*

जब हिंदू विभाजन स्मृति दिवस मनाएगा तो उसे ये भी याद आएगा कि कैसे देश का बंटवारा हुआ धर्म के आधार पर... *लेकिन हिंदुओं को इस बंटवारे में कुछ नहीं मिला जबकि रोहिंग्या और बांग्लादेशियों को घुसपैठ के लिए एक और देश मिल गया।*

- जब किसी मुसलमान के कान में विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस का शब्द सुनाई देगा *तो उसे ये याद आएगा कि कैसे उसके मुसलमान पूर्वजों ने इस्लामी तालीम पर चलते हुए काफिरों के इस मुल्क के तीन टुकड़े किए थे...* और वो मूल रूप से गद्दारों और भारत के दुश्मनों का वंशज है और इस देश में सिर्फ इसलिए आराम से रह पा रहा है *क्योंकि हिंदू दयालु और सहनशील है । जब वो ये याद करेगा तो उसे ये समझ में आएगा कि उसे यहां ज्यादा पाने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए बल्कि अल्लाह का शुक्र अदा करना चाहिए कि हिंदू बहुत दयालु और मूर्ख है जो उसे यहां आराम से रहने दे रहा है।*

- विभाजन की स्मृतियां कितनी दुखद थीं... इसकी तमाम घटनाएं इतिहास की किताबों में दर्ज है... ऐसी ही एक किताब है... *मिडनाइट फ्रीडम* जिसके लेखक डोमिनिक लैपियर और लैरी कॉलिन्स ने विभाजन की घटनाओं में हिंदू नरसंहार का जिक्र किया है... *उसी किताब का एक अंश यहां प्रस्तुत है... जब हिंदुओं की लाशों से भरी हुई एक ट्रेन भारत पहुंची थी... तो क्या दृश्य था... समझिए...*

किताब का अंश-

*उस ट्रेन से अमृतसर में एक भी शरणार्थी क्यों नहीं उतरा था। वह भूतों की नहीं, बल्कि लाशों की गाड़ी थी । उनके सामने डिब्बे के फर्श पर इंसानी जिस्मों का ढेर लगा हुआ था, किसी का गला कटा हुआ था, किसी की खोपड़ी चकनाचूर थी, किसी की आँतें बाहर निकल आयी थीं।* डिब्बों में आने-जाने के रास्ते में कटे हुए हाथ, टाँगें और धड़ इधर-उधर बिखरे पड़े थे। *इंसानों के उस भयानक ढेर के बीच से छेनी सिंह को अचानक किसी की घुटी-घुटी आवाज सुनायी दी।* यह सोचकर कि उनमें से शायद कोई जिंदा बच गया हो उन्होंने जोर से आवाज लगायी *“अमृतसर आ गया है। यहाँ सब हिंदू और सिख हैं। पुलिस उपस्थित है। डरो नहीं।”* उनके ये शब्द सुनकर कुछ मुर्दे हिलने-डुलने लगे।
*इसके बाद स्टेशन मास्टर छेनी सिंह ने जो भयानक दृश्य देखा वह उनके दिमाग पर एक भयानक स्वप्न की तरह हमेशा के लिए अंकित हो गया।*
एक स्त्री ने अपने पास पड़ा हुआ अपने पति का कटा हुआ सिर उठाया और उसे अपने सीने से दबोचकर चीखें मार-मारकर रोने लगी।
*उन्होंने बच्चों को अपनी मरी हुई माँओं के सीने से चिपटकर रोते-बिलखते देखा।*
कोई मर्द लाशों के ढ

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