#गोमुत्र कटु तीक्ष्णोष्णम् सक्षारत्वान्न वातलम् ।
लध्विग्नदीपनं मेध्यंपित्तल कफावातनुत ।।
शूलगुल्मोदरानाह: विरेकास्थापनादिषु ।
मूत्रप्रयोगसाध्येषुगव्यमं मूत्रं प्रयोग जयेत् ।।
( #सुश्रृत संहिता सूक्त 45-220-21)
अर्थात #गाय का मूत्र कटूरस, तीक्ष, उष्ण, क्षार युक्त होने के कारण से #वायु नाशक है कारक नहीं । लघु, अग्निपरदीपक पवित्र मेधा, पित्तकारक कफ,...
और पढें ...